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Showing posts from July, 2015

मांणक सूं मुंगी घणी जुड़ै न हीरां जोड़

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़, पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़ !! आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़, रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़ !! दान जगन तप तेज हूं बाज...

हिन्द पीछाणो आप बल, करो घोर घमसांण ।

हिन्द पीछाणो आप बल, करो घोर घमसांण । बिण माथे रण मांडणो, हरबल में राजस्थान ।। हे भारत ! तुम अपनी शक्ति की स्वयं पहचान करो व घमसान युद्ध में जुट जाओ । तुम क्यों डरते हो ? सिर कटने पर भी भयंकर संग्राम करने वाले वीरों का राजस्थान आज युद्ध - भूमि मे अग्रिम पंक्ति (हरावल) में जो है ।। लेखक - आयुवान सिंह हुडील वीर गाथाएं

सिर देणों रण खेत में, स्याम धर्म हित चाह |

सिर देणों रण खेत में, स्याम धर्म हित चाह | सुत देणों मुख मौत में, इण धर रुड़ी राह ||      रण-क्षेत्र में अपना मस्तक अर्पित करना,स्वामी का हमेशा हित चिंतन करना व अपने पुत्रों को भी स्वधर्म पालन के लिए मौत के मुंह में धकेल देना इस राजस्थान की पावन धरती की परम्परा रही है ॥

मत कर मोद, रिसावणो, मत मांगै रण मोल ।

मत कर मोद, रिसावणो, मत मांगै रण मोल । तो सिर बज्जै आज लौ, दिल्ली हन्दा ढोल ।। हे राजस्थान ! तू अपनी वीरता पर गर्व मत कर, रुष्ट भी मत हो और न रण भूमि में लङने के लिए प्रतिकार के रूप में किसी भी प्रकार के मुल्य की ही कामना कर । क्योंकि आज तक दिल्ली की रक्षा के लिए आयोजित युद्धों के नक्कारे तेरे ही बल-बुते बजते रहे हैं ।। लेखक - आयुवान सिंह हुडील

धरती माँ बोलो अवध के मेरे पुरुषोत्तम राम कहाँ?

धरती माँ बोलो अवध के मेरे पुरुषोत्तम राम कहाँ? यमुना बोलो कालिया मर्दन करने वाले घनश्याम कहाँ? भीष्म का शौर्य कहाँ, बलों के धाम बलराम कहाँ? बोलो मेवाड़ फिर एकबर मेरा महाराण...

जय महाराणा प्रताप

वह पराधीनता की रजनी में गौरव का उजियाला था जो चढ़ा मान सिंह के सिर पर राणा प्रताप का भाला था बाप्पा रावल का वंशज वह, भारत गौरव का प्रतिमान वह दृढ प्रतिज्ञ रण कुशल वीर, रखी राजप...