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मत कर मोद, रिसावणो, मत मांगै रण मोल ।

मत कर मोद, रिसावणो, मत मांगै रण मोल ।
तो सिर बज्जै आज लौ, दिल्ली हन्दा ढोल ।।

हे राजस्थान ! तू अपनी वीरता पर गर्व मत कर, रुष्ट भी मत हो और न रण भूमि में लङने के लिए प्रतिकार के रूप में किसी भी प्रकार के मुल्य की ही कामना कर ।
क्योंकि आज तक दिल्ली की रक्षा के लिए आयोजित युद्धों के नक्कारे तेरे ही बल-बुते बजते रहे हैं ।।

लेखक - आयुवान सिंह हुडील

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