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राजपूती दोहे

•» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥
सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ”

मतलब :-

•» एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है,
पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका धड लड़ते हुए गिरा था….

वसुन्धरा वीरा रि वधु , वीर तीको ही बिन्द |
रण खेती राजपूत रि , वीर न भूले बाल ||

अथार्थ
धरती वीरों की वधु होती है और युद्ध क्षत्रिय का व्यवसाय |

राजा वह था नहीं , एक साधारण सा राजपूत था !
राजाओं के मस्तक झुक जाते थे , ऐसा वो सपूत था !

दारु मीठी दाख री, सूरां मीठी शिकार।
सेजां मीठी कामिणी, तो रण मीठी तलवार।।

बिण ढाला बांको लड़े,
सुणी ज घर-घर वाह |
सिर भेज्यौ धण साथ में,
निरखण हाथां नांह ||९७||

युद्ध में वीर बिना ढाल के ही लड़ रहा है | जिसकी घर-घर में प्रशंसा हो रही है | वीर की पत्नी ने युद्ध…
में अपने पति के हाथ (पराक्रम) देखने के लिए अपना सिर साथ भेज दिया है |(उदहारण-हाड़ी रानी )|

मूंजी इण धर मोकला,
दानी अण घण तोल |
अरियां धर देवै नहीं,
सिर देवै बिन मोल ||९८||

इस धरा में ऐसे कंजूस बहुत है जो दुश्मन को अपनी धरती किसी कीमत पर नहीं देते व ऐसे दानी भी अनगिनत है जो बिना किसी प्रतिकार के अपना मस्तक युद्ध-क्षेत्र में दान दे देते है |

तलवार से कडके बिजली,
लहु से लाल हो धरती,
प्रभु ऐसा वर दो मोहि,
विजय मिले या वीरगति ॥

मंजूर घास की रोटी है घर चाहे नदी पहाड़ रहे…अंतिम साँस तक चाहूँगा स्वाधीन मेरा मेवाड़ रहे.
.महाराणा प्रताप

“हम मृतयु वरन करने वाले जबजब हथियार उठाते हैं
तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं
हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जIगता हैं
तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता ह..

वो कौमे खुशनसीब होती है; जिनका इतिहास होता है!
वो कौमे बदनसीब होती है; जिनका इतिहास नहीं होता है!
और वो कौमे सबसे ज्यादा बदनसीब होती है; जिनका इतिहास भी होता है लेकिन वो इतिहास से सबक नहीं लेती”
जो क्षति से समाज की रक्षा करे वो ही सच्चा क्षत्रिय है!

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