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परमार वंश के दोहे

वड पोहो भो परमार वंश , आहव वीर अभंग !! नृप उज्जैणी नगर रा , राव सुन्धवा रंग !!१!! पर दुख भंजण पराक्रमी , दिपयो दनी देवंग !! कश्मीर दत किनी कवियां , राजा विक्रम रंग !!२!! धारा नगर दाता धणी , आंणे चीत उछरंग !! पयंपया दान परमार पत , राजा भौज सु रंग !!३!! नृपत वीर पारी नगर , हंसराज वड हाथ !! वंकम दत अधको वदां , निडर कलिन्जर नाथ !!४!! आल पाल अर्बुदगिरी , जबर सेन भट जंग !! व्रविया दत परमार वड , राखयो जस घण रंग !!५!! जोगराज जबरो भयो ,धर्मातम धर धाट !! उणने प्रात रंग अपूं , नीति युत शुद्ध नराट !!६!! पोहो रंग परमार पति , मर्द वीर मन मोट !! धरणी वराह मरूधरा , किया वंट नव कोट !!७!! त्यागे राज वैभव तणो , तुरत मन मोह तुरंग !! भूप गोपीचन्द भरथरी , राज योगेसर रंग !!८!! देश पारकर दिपयो , पुरण ग्रही प्रतंग !! करोड़ बगस दांतण कियो , राजा चंदण रंग !!९!! परमार वंसी पराक्रमी , नृप दाता नवडंग !! उतबंग दियो उतार नीज , राजा जगदे रंग 1!!१०!! गवराया जस गीतड़ा , अमर सु नाम उतंग !! पौहव धन्न पाराकरा , रांणा काछब रंग !!११!! शरणागत तीतर साटे , जुड़े चभाड़ां जंग !! वीर मुंजा पकमार वर , रतन सु
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आग धधकती है सीने मे,

आग धधकती है सीने मे, आँखों से अंगारे, हम भी वंशज है राणा के, कैसे रण हारे...? कैसे कर विश्राम रुके हम...? जब इतने कंटक हो, राजपूत विश्राम करे क्योँ, जब देश पर संकट हो. अपनी खड्ग उठा लेते है, बिन पल को हारे, आग धधकती है सीने मे........... सारे सुख को त्याग खडा है, राजपूत युँ तनकर, अपने सर की भेँट चढाने, देशभक्त युँ बनकर.. बालक जैसे अपनी माँ के, सारे कष्ट निवारे. आग धधकती है सीने मे........... :-ठाकुर धर्मेँद्र सिँहजी तोमर

शायरी

ये तो राजपूतो की तलवारो का कारनामा है दोस्तों... वरना हिंदुस्तान तो कभी का मुगलस्तान हो चूका होता।

क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये..........

क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये ! छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार, अँहकार मे तन गये ! क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटने पर भी लङते थे ! दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ शेरो कि भाँती टूट पङते थे ! शेरो सी शान,हिमालय सी ईज्जत,और गौरवशाली इतिहास का पूरखो ने हमे अभयदान दिया ! जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान दिया ! छूट गई शान, टुट गयी इज्जत पी दारु छोङे सँस्कार ! ईतिहास का हमने अपमान किया भूल गई क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया !! तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत का क्यो अपमान किया ! दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने गोरी को 18 बार छोङ दिया !! पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो बिन आँखो के चौहान ने गोरी का शिर फोङ दिया ! अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत को हिला दिया ! वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी मे मिला दिया !! अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला दिया ! भूल गई क्या दुनिया- हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो को मिट्टी मे मिला दिया ॥ – जितेन्द्र सिंह राठोड

जूंझार जीवकरणजी

       ✍काव्य-रचना✍ किण भात लिखू म्है म्हनै बता, जीवकरण रे वीरता री गाथाl आ कलम केवती क्यु सिसके, निश्वास छोड़ती अब हाथा ll जीवकरण जूंझार री अमर कहानी, जद् लिखवा ने हुँ तैयार हुओl मोती सरीखा आखर अंगारा बण, आग धधकतो लार हुओll वो सनातन धर्म रो रखवालो, जद् गाया री वाहर चढियो होl मायड़ जाया पूत रणखेता मे, नही दूध लजायो हो ll क्षात्रधर्म रो पालन करता, रणभूमि मे शीश चढायो होl दे हुक दडुक्या नाहर ज्यु, बैरया रा छक्का छुड़ायो हो ll डोली नाडी पर ठोक ताल, जीवकरण री तलवार नाची हीl शीश कटया धड़ सू अलबेले, सराईया री छातया फाड़ी ही ll थै आज ऊठो भरी नीदड़ली सू, कलयुग रू लायां घर जोवेl पुरखा री सांची सीख लिया, पथ उजलो अणूथी बाट जोवे ll इण धरती रो कण-कण ऊँचो, जीवकरण रो कारण सारण नेl इण ठोड़ सावरिये पग धरिया, शीश नवो इण धरती ने ll ✍किशनसिंह वरिया "

लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

माँ तुम्हारा लाडला रण में अभी घायल हुआ है... पर देख उसकी वीरता को, शत्रु भी कायल हुआ है... लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ... रक्त की होली रचा कर, मैं प्रलयंकारी दिख रहा हूँ ... माँ उसी शोणित से तुमको, पत्र अंतिम लिख रहा हूँ... युद्ध भीषण था, मगर ना इंच भी पीछे हटा हूँ.. माँ तुम्हारी थी शपथ, मैं आज इंचो में कटा हूँ... एक गोली वक्ष पर कुछ देर पहले ही लगी है... माँ, कसम दी थी जो तुमने, आज मैंने पुर्ण की है... छा रहा है सामने लो आँखों के आगे अँधेरा... पर उसी में दिख रहा है, वह मुझे नूतन सवेरा... कह रहे हैं शत्रु भी, मैं जिस तरह सोया हुआ हूँ... लग रहा है सिंहनी के कोख सेपैदा हुआ हूँ... यह ना सोचो माँ की मैं चिर- नींद लेने जा रहा हूँ ... माँ, तुम्हारी कोख से फिर जन्म लेने आ रहा हूँ... पिता से---मैं तुम्हे बचपन में पहले ही बहुत दुःख दे चुका हूँ... और कंधो पर खड़ा हो, आसमां सर ले चुका हूँ. लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

!!!!जरा याद क्षात्र धर्म को करलो!!!!

भूल क्षत्रिय धर्म को ,मात्र राजपूत हम बन गये, छोङे दिये सारे क्षत्रिय सँस्कार,और अँहकार मे तन गये । क्षत्रिय धर्म मे पलने वाले, शिर कटने पर भी लङते थे, होता अगर अन्याय और पाप कहिँ तो, शेरो कि भाँती टूट पङते थे । देवो सी शान,हिमालय से ऊंची ईज्जत, और गौरवशाली इतिहाष का पूरखो ने हमे अभयदान दिया, जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे देवो सा सम्मान दिया। छूट गई शान, टूट गयी इज्जत, पी दारु ईतिहास का हमने अपमान किया, अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत को हिला दिया। वीर दुर्गादास ने मुगलो के सपनो को मिट्टी मे मिला दिया। अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला दिया । भूल गई क्या दुनिया- हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो को मिट्टी मे मिला दिया। ॥जय क्षात्र धर्म॥ जय क्षत्रिय ।। लेखनी-हरिनारायण सिँह राठौङ खुडियाला