Skip to main content

लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

माँ तुम्हारा लाडला रण
में अभी घायल हुआ है...
पर देख उसकी वीरता को, शत्रु
भी कायल हुआ
है...
लग रहा है सिंहनी के कोख
से पैदा हुआ हूँ...

रक्त की होली रचा कर, मैं
प्रलयंकारी दिख
रहा हूँ ...
माँ उसी शोणित से तुमको,
पत्र अंतिम लिख
रहा हूँ...

युद्ध भीषण था, मगर ना इंच
भी पीछे हटा हूँ..
माँ तुम्हारी थी शपथ, मैं आज
इंचो में कटा हूँ...

एक गोली वक्ष पर कुछ देर पहले
ही लगी है...
माँ, कसम दी थी जो तुमने,
आज मैंने पुर्ण की है...

छा रहा है सामने लो आँखों के
आगे अँधेरा...
पर उसी में दिख रहा है, वह मुझे
नूतन सवेरा...

कह रहे हैं शत्रु भी, मैं जिस तरह
सोया हुआ हूँ...
लग रहा है सिंहनी के कोख
सेपैदा हुआ हूँ...

यह ना सोचो माँ की मैं चिर-
नींद लेने
जा रहा हूँ ...
माँ, तुम्हारी कोख से फिर
जन्म लेने आ रहा हूँ...

पिता से---मैं तुम्हे बचपन में पहले
ही बहुत दुःख
दे चुका हूँ...
और कंधो पर खड़ा हो,
आसमां सर ले चुका हूँ.
लग रहा है सिंहनी के कोख
से पैदा हुआ हूँ...

Comments

Popular posts from this blog

राजपूती दोहे

रा जा झुके, झुके मुग़ल मराठा, राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा, झुक गगन सारा। सारे जहाँ के शीश झुके, पर झुका न कभी "सूरज" हमारा।। झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे ! झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे मोर...

राजपूती दोहे

•» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥ सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ” मतलब :- •» एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है, पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका ध...

वीरवर पाबूजी राठौड़ ॥

"रजवट रो थूं सेहरौ, सब सूरां सिरमौङ । धरती पर धाका पङै, रंग पाबू राठौड़ ।। "घोङो, जोङो, पागङी, मूछां तणी मरोड़ । ऐ पांचू ही राखली, रजपूती राठौड़ ।।