आग धधकती है सीने मे,
आँखों से अंगारे,
हम भी वंशज है राणा के,
कैसे रण हारे...?
कैसे कर विश्राम रुके हम...?
जब इतने कंटक हो,
राजपूत विश्राम करे क्योँ,
जब देश पर संकट हो.
अपनी खड्ग उठा लेते है,
बिन पल को हारे,
आग धधकती है सीने मे...........
सारे सुख को त्याग खडा है,
राजपूत युँ तनकर,
अपने सर की भेँट चढाने,
देशभक्त युँ बनकर..
बालक जैसे अपनी माँ के,
सारे कष्ट निवारे.
आग धधकती है सीने मे...........
:-ठाकुर धर्मेँद्र सिँहजी तोमर
Comments
Post a Comment