भूल क्षत्रिय धर्म को ,मात्र राजपूत हम बन गये,
छोङे दिये सारे क्षत्रिय सँस्कार,और अँहकार मे तन गये ।
क्षत्रिय धर्म मे पलने वाले, शिर कटने पर भी लङते थे,
होता अगर अन्याय और पाप कहिँ तो, शेरो कि भाँती टूट पङते थे ।
देवो सी शान,हिमालय से ऊंची ईज्जत,
और गौरवशाली इतिहाष का पूरखो ने हमे अभयदान दिया,
जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे देवो सा सम्मान दिया।
छूट गई शान, टूट गयी इज्जत, पी दारु ईतिहास का हमने अपमान किया,
अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत को हिला दिया।
वीर दुर्गादास ने मुगलो के सपनो को मिट्टी मे मिला दिया।
अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला दिया ।
भूल गई क्या दुनिया-
हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो को मिट्टी मे मिला दिया।
॥जय क्षात्र धर्म॥
जय क्षत्रिय ।।
लेखनी-हरिनारायण सिँह राठौङ खुडियाला
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