Skip to main content

मांणक सूं मुंगी घणी जुड़ै न हीरां जोड़

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़,
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़ !!
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़,
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़ !!
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़,
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़ !!
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह,
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह !!
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़,
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़ !!
गढला भारत देस रा जुडै न थारी जोड़,
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़ !!

Comments

Popular posts from this blog

राजपूती दोहे

रा जा झुके, झुके मुग़ल मराठा, राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा, झुक गगन सारा। सारे जहाँ के शीश झुके, पर झुका न कभी "सूरज" हमारा।। झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे ! झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे मोर...

राजपूती दोहे

•» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥ सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ” मतलब :- •» एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है, पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका ध...

वीरवर पाबूजी राठौड़ ॥

"रजवट रो थूं सेहरौ, सब सूरां सिरमौङ । धरती पर धाका पङै, रंग पाबू राठौड़ ।। "घोङो, जोङो, पागङी, मूछां तणी मरोड़ । ऐ पांचू ही राखली, रजपूती राठौड़ ।।