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Showing posts from January, 2016

हल्दीघाटी

निर्बल बकरों से बाघ लड़े¸ भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से। घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸ पैदल बिछ गये बिछौनों से।।1।। हाथी से हाथी जूझ पड़े¸ भिड़ गये सवार सवारों से। घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े¸ तलवार लड़ी तलवारों से।।2।। हय–रूण्ड गिरे¸ गज–मुण्ड गिरे¸ कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे। लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸ भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।3।। क्षण महाप्रलय की बिजली सी¸ तलवार हाथ की तड़प–तड़प। हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा¸ लेती थी बैरी वीर हड़प।।4।। क्षण पेट फट गया घोड़े का¸ हो गया पतन कर कोड़े का। भू पर सातंक सवार गिरा¸ क्षण पता न था हय–जोड़े का।।5।। चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी¸ लेकर अंकुश पिलवान गिरा। झटका लग गया¸ फटी झालर¸ हौदा गिर गया¸ निशान गिरा।।6।। कोई नत–मुख बेजान गिरा¸ करवट कोई उत्तान गिरा। रण–बीच अमित भीषणता से¸ लड़ते–लड़ते बलवान गिरा।।7।। होती थी भीषण मार–काट¸ अतिशय रण से छाया था भय। था हार–जीत का पता नहीं¸ क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय।।8।। कोई व्याकुल भर आह रहा¸ कोई था विकल कराह रहा। लोहू से लथपथ लोथों पर¸ कोई चिल्ला अल्लाह रहा।।9।। धड़ कहीं पड़ा¸ सिर कहीं पड़ा¸ कुछ भी उनकी पहचान नहीं। शोणित का ऐसा वेग ...

रियासत कालीन आम राजपूत की जिंदगी

एक आम राजपूत जिसने रजवाड़ो की आन बान शान के लिए अपनी पूरी जिंदगी लूटा दी लेकिन रजवाड़ो से जिस सम्मान की वो अपेक्षा  करता था नहीं मिलने पर उसका मन द्रवित हो उठता है और इस पीड़ से उसके मन में कुछ भाव और विचार उभरते है और वो उसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने की छोटी सी कोशिस करता है। ना रजवाड़ा म जन्म लियो, न ही गढ़ रो राज। दरबारां री धोख मारां जद मिळ है दो मण नाज।। राज करणिया राज करयो, म्हे तो चौकीदार। रण लड़ता र शीश चढ़ाता, साथण ही तरवार।। साथण ही तरवार, राजा री शान बचावण न। ब जनम्या  कूबद कमावण न म्हे जनम्या रण में खून बहावण न।। म्हे जनम्या रण म खून बहावण न ब जनम्या राज रो काज चलावण न। म्हे जनम्या हुकुम निभावण न ब जनम्या हुकुम सुणावण न।। ब जनम्या सोना रा थाळ म खावण न म्हे जनम्या सुखा टूक चबावण न। ब जनम्या फूला री सेज सजावण न म्हे जनम्या रातां री नींद जगावण न।। ब जनम्या मद र रास रचावण न म्हे जनम्या रजवाड़ी लाज बचावण न। ब जनम्या खुद रो नाम कारावण न म्हे जनम्या कौम रो मान कमावण न।। जन्मभोम र मान र खातर खुद रो खून बहायो है। बाँ न अमर राखबा खातर मन्न थे बिसरायो है।। मेरो खून रो मोल छिप...

!!"राजपूत है हम"!!

कहते तो है, की राजपूत है हम राजपूत हैं हम , मानवता की लाज बचाने वाले, हिन्द के वो वीर सपूत है हम । पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा । राणा और शिवाजी की वो तलवार अब कँहा । हमारे प...

जो लोग क्षत्रियों को अत्याचारी ठाकुर और निर्दयी सामन्त के रूप में प्रचारित कर रहे है वो जरा इन पंक्तियों को पढ़कर जबाब देवे।

हूँ रण लड्यो हूँ अडिग खड्यो, लोगां री लाज बचावण न। मानस र खातर हाजिर रहतो, मौत सूं आँख मिलावण न।। लोग काह्व ठुकराई करतो, हूँ सोतो नागां रा बाड़ा म। कुटम्ब कबीलो खोयो सारो, रण खून टपकतो नाड़ा म।। तलवारों रो वार झेलतो, थारा ही घर बसावण न। चौसठ फोर मौत नाचती, मौत री सजा सुणावण न।। कुण सामन्ती कयाँ रा ठाकर, म्हे तो चौकीदार रह्या। खुद न छोटा बता हमेशा, थे गढ़ रा गदार रह्या।। सौ सौ घावां धड़ झेल्या, पूत सागेड़ा रण मेल्या। थारा घर रा दिवला ताणी, म्हे तो रातां रण खेल्या।। छोड्या पूत पालण सोता,  छोड़्या म्हे दरबारां न। रोती छोड़ मरवण न म्हे तो, धारी ही तरवारां न।। कदे भेष में साँगा र तो, कदे मैं पिरथिराज बण्यो। कदे प्रताप भेक बणा र, मेवाड़ी री कुख जण्यो।। मैं ही तो बो शेखों जिण न धर्म रो पाठ पढ़ायो हो। धर्म धरा अर धेनु ताणी, खुद रो शीश चढायो हो।। कियां भूलग्या हठ हाडा रो, क्यों भुल्या बाँ रणधीरां न। थारी खातर रण मं कटता, कियाँ भुल्या थे बाँ वीरां न।। न ब धर्म जात में बंटता, ना ही कुटम कबिलां में। पिढ्यां खुद री रण में मेली, राखण खुशियां थारा कबीला मे।। बण राण...

जाग उठा है क्षत्रिय फिर से

आज हिमालय की चोटी से, ध्वज कैशरीयां लहराएगा, जाग उठा है क्षत्रिय फिर से, भारत स्वर्ग बना एगा ।। इस झंडेकी महिमा देखो, रंगत अजब निराली है, इस पर तो ईश्वर ने डाली, सूर्योदय की लाल...

भारत का मान बिन्दु :-

भारत का मान बिन्दु, केशरिया यह झण्डा हमारा ! मर के अमर हो जाना, पर यह झण्डा न निचे झुकाना !! लाखो चढ़े थे शमा पर किन्तु बुझने न दी यह ज्योति ! बलिदानों की ये कथाएँ बातों में ना तूम भ...

क्षत्रियो ने उठाई है तलवार।

जय क्षत्रिय|| पापो का भार । क्षत्रियो ने उठाई है तलवार। रावण का जब बढ गया था अँहकार। तो राम ने लिया था क्षत्रिय कुल मेँ अवतार। जब बहूत मारा था लोगो को पापी कँस ने। तो लिया था अ...