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!!"राजपूत है हम"!!

कहते तो है, की राजपूत है हम राजपूत हैं हम ,
मानवता की लाज बचाने वाले, हिन्द के वो वीर सपूत है हम ।
पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा ।
राणा और शिवाजी की वो तलवार अब कँहा ।
हमारे पूर्वजों मैं कृष्ण और मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम है ।
राणा, शिवाजी और दुर्गा दास जी के भी नाम है।
तो फिर राम का मर्यादित जीवन अब है कँहा।
राणा और दुर्गादास जी के जैसी लगन अब है कँहा ॥
दानी कर्ण और राजा शिवी का नाम हम पूर्वजो लेते है ।
भागिरथ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र की साख भी हम
दूनियाँ को देते है॥
तो फिर भागिरथ जैसा तप अब कँहा है ।
झुकाया था भगवान को सत्य के आगे वो
सत्य का अवलम्ब अब कँहा है ।
हमेँ गर्व है की हम शिर कटने पर भी लङते थे ।
खेल खेल मेँ ही हमारे वीर जँगली शेरो से अङते थे।
सतयुग, त्रेता और द्वापर तो क्षत्रियोँ के स्वर्ण युग रहै ।
कलयुग मे भी आज तक क्षत्रिय श्रेष्ठ रहे
चाहै उन्होने कठिन ही कष्ठ सहै ॥
पर सोचना तो हमे है जो क्षत्रिय धर्म
और सँस्कार भूल रहै ।
देख रहे रहे है हम शेर भी गीदङो की
गुलामी कबूल रहै है।
""अब तो ईस राख मे छुपे अँगारे
को जगा लो साथियोँ ।
जिस धर्म ने महान बनाया हमे
उसे अपनालो साथियोँ ।""
जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म ॥

-हरिनारायण सिँह राठौङ

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