भारत का मान बिन्दु, केशरिया यह झण्डा हमारा !
मर के अमर हो जाना, पर यह झण्डा न निचे झुकाना !!
लाखो चढ़े थे शमा पर किन्तु बुझने न दी यह ज्योति !
बलिदानों की ये कथाएँ बातों में ना तूम भुलाना !!
बूंदी की शान कुम्भा ने, मेवाड़ में लड़कर बचाई !
उसने नकली किला बचाया, तुम असली निशां ना झुकाना !!
हाथी से टक्कर दिलाकर, छाती से किला तुड़ाया !
वीरों की अमर कहानी, चुल्लू पानी में ना तुम डुबाना !!
पच्चीस वर्ष कष्टों के, प्रताप ने वन में सहे थे !
स्वतंत्रता के दीवानों, का भी यही तराना !!
ओ भारत के वीर सपूतो, ओ राष्ट्र के तुम सितारों !
जननी की लाज कभी तुम, अपने न हाथो लुटाना !!
अपमान औ' ठोकर की अग्नि अश्रु बूंदों से ना तुम बुझाना !
बुझाना तुम्हे हो कभी तो, खूं की नदी से बुझाना !!
श्री तन सिंह
मार्च, 1946 !
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