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Showing posts from February, 2016

जूंझार जीवकरणजी

       ✍काव्य-रचना✍ किण भात लिखू म्है म्हनै बता, जीवकरण रे वीरता री गाथाl आ कलम केवती क्यु सिसके, निश्वास छोड़ती अब हाथा ll जीवकरण जूंझार री अमर कहानी, जद् लिखवा ने हुँ तैयार हु...

लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

माँ तुम्हारा लाडला रण में अभी घायल हुआ है... पर देख उसकी वीरता को, शत्रु भी कायल हुआ है... लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ... रक्त की होली रचा कर, मैं प्रलयंकारी दिख रहा हूँ ... म...

!!!!जरा याद क्षात्र धर्म को करलो!!!!

भूल क्षत्रिय धर्म को ,मात्र राजपूत हम बन गये, छोङे दिये सारे क्षत्रिय सँस्कार,और अँहकार मे तन गये । क्षत्रिय धर्म मे पलने वाले, शिर कटने पर भी लङते थे, होता अगर अन्याय और पाप क...

क्षत्रिय पथ बिना रजपूती ना बणे रे भाईयों

क्षत्रिय ! ! मित्रों ! क्षत्रिय पथ बिना रजपूती ना बणे रे भाईयों , लाख करो विचार । पथ छोङिया मँजिल ना मिले रे भाईयों , जतन करो हजार । मर्यादा रखी राजा राम ने रे भाईयों ,दुनिया पुजे ब...

जद रजपुती भाल चमकतो...

जद देखूँ मैं उगतो सूरज,रीस घणी ही आव है। उगतो छीपतो सुरजड़ो ओ टीस घणी दे ज्यावे हैं।। उगतोड़ो तो रजपुती रो जसड़ो याद दिराव है। छीपतोड़ो तो रजपुती री,पतन री बात बताव है।। जद जद देखूँ रजपुती न,सनाँ में समझाव है। कठ्य गया ब रणधीरा,बाँ री याद घणी ही आव है।। जद रजपुती भाल चमकतो,सुरजड़ो ओट लगावो हो। धरा हालति पगल्यां सुं,जद कोई कुख सिघणी री जावो हो।। रजपुती तो बा ही कहिजे,रजवट कायर कीकर है। खून खोळतो ठण्डो कीकर,नाड्यां ढीली कीकर है।। लेखनी कुं नरपत सिंह पिपराली