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परम्पराएं थाती जिनकी


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सब कुछ न्यौछावर कर देना,
जिस समाज की   शान    है।
परम्पराएं    थाती    जिनकी,
रहे     शाश्वत     प्राण    है।
त्याग सदा  करती  आई   है,
ललनाएं   सब      छोड़कर।
इसीलिए चलते  हम   सीना,
गर्वीभूत     हो        तानकर।
हर  नारी   ऊमादे   जिसकी,
बनकर    रहती   शान    है।
परम्पराएं........................

फिर युगों- युगों की रीत को,
ऐसे     कैसे    तोड़       दे?
कौम हमारी करम रेख   का,
रस्ता    कैसे    छोड़     दे?
ललना पुन: नव  बंधन  बंधे,
यह   कैसा   सम्मान      है ?
परम्पराएं.......................

ये कहना  तो ठीक  नहीं  है,
कभी  नहीं    स्वीकार    है।
सोचे,समझे   और   विचारे,
प्यारी   सबसे   आन     है।
हर  नारी  सीता   सतवंती,
उसका  यह   अपमान   है ।
परम्पराएं......................

आओ नये  सिरे से  मिलकर,
समाज-वट   को   सींच    दे।
यह तो राम कृष्ण से शोभित,
जीवन   इसको    सौंप    दे।
मां  जगदम्बा   के   हाथो  में,
जिसकी  सदा   कमान    है।
परम्पराएं   थाती     जिनकी,
रहे   शाश्वत    प्राण       है।

         - महेन्द्रसिंह सिसोदिया
                 (छायण)

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