था सूर्य चमकता राजपूतो का,
घनघोर बदरिया डरती थी।
था शेर गरजता सीमाओ पर,
बिजली भी आहे भरती
थी।
है खून वही उन नब्जों मे,
फिर क्यो वर्षो से सोते हो।
लूटा है चंद सियारो ने,
फिर क्यो इन्हे मौका देते हो।
अब चीर दो सीना काफिर के,
तलवार वही पुरानी है।
रक्षक हो तुम इस भारत के,
ललकार रही भवानी है।
जय क्षात्र धर्म की
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