ये सूर्यवंशी चंद्रवंशी वीर थे कैसे वली,
जो मचाते थे अकेले शत्रु दल मे खलबली ।
उपदेश गीता का हमारा युद्ध का ही गीत है,
जीवन समर मे भी जनो को जो दिलाता जीत है ।
थे भीम तुल्य महाबली अर्जुन समान महारथी ,
श्री कृष्ण लीला मय हुए थे आप जिनके सारथी ।
जो शब्द भेदी बाण छोडे शूर ऐसा कौन था,
हम थे धनूर्वेदज्ञ जैसा और वैसा कौन था ।
जिसके समक्ष न एक भी विजयी सिकन्दर की चली ,
वह चन्द्रगुप्त महीप था कैसा अपूर्व महाबली ।
जो एक सौ सौ से लङे ऐसे यहां पर वीर थे,
सम्मुख समर मे शेल सम रहते सदा हम धीर थे ।
शंका न थी जब जब समर का साज भारत ने सजा ,
जावा सुमात्रा चीन लंका सब कही डंका बजा ।
महान राष्ट्रीय कवि
मैथलीशरण गुप्त
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