तूं जब से इस दूनिया में आया...
तुने क्षत्रिय कुल जब पाया...
कर उस क्षात्र धर्म को वंदन......
जिसे किस्मत से तुने पाया...
में जब से समजन लागा. ..
मेरा भाग्य पूराना जागा. ...
कभी तलवारों से खेला....
कभी सजा जोहर का मेला...
कभी राम कृष्ण हरी बनकर......
मर्यादा का पाठ पढ़ाया.......
कर उस क्षात्र धर्म को वंदन....
जिसे किस्मत से तुने पाया...
समाज को समर्पित।
जय क्षत्रिय !
रा जा झुके, झुके मुग़ल मराठा, राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा, झुक गगन सारा। सारे जहाँ के शीश झुके, पर झुका न कभी "सूरज" हमारा।। झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे ! झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे मोर...
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