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राजपूती दोहे

राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा,

राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा, झुक गगन सारा।
सारे जहाँ के शीश झुके, पर झुका न कभी "सूरज" हमारा।।

झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे !
झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे मोरां छतरी छाई जी ।
कलमें हो तो आव सुजाणा फौज देवरे आयी जी ।।

खाली धङ रि कद हुवे चेहरे बीनापिछाण,

खाली धङ रि कद हुवे चेहरे बीनापिछाण, राजपूता रे बीना क्यारो राजस्थान ।

"तुरक सराह्यो तोर, तेग तणों थारो त्रिमल

"तुरक सराह्यो तोर, तेग तणों थारो त्रिमल,
राज करो नागौर, दीन्हो मनसब राव को ।"

"गौङ बुलावे घाटवे चढ़ आओ शेखा ।

"गौङ बुलावे घाटवे चढ़ आओ शेखा ।
थारा लशकर मारणा देखण का अभलेखा ।।

काढी खग्ग

" काढी खग्ग हाथ नीकी चोकी किनात बाढी,
सिस दाढी मियाँ गिरे गिरवान को ।।
नूरुद्दीन भाग्यो लार लाग्यो नहीं जान दीनू,
खबर लागी मार डारयो सारो कुल खांनको ।।

टोडरमल

तू शेखो तू रायमल तू ही रायासाल ।
जयसिंह का दल ऊजला थांसूं टोडरमल ।।
दोय उदयपुर ऊजला दो दातार आटल्ल ।
यक तो राणू जगतसी दूजो टोडरमल ।।

राजपुतो ने अपना एक कौल रखा,

राजपुतो ने अपना एक कौल रखा,
चाहते हैं सब ही राज की रक्खा ।।
हमारा तो मरने का ही इरादा,
इसी राह पर काम आये बाप-दादा ।।

सौ राजन का राजा कैसा

सौ राजन का राजा कैसा,
जेठ मास कि आफताब जैसा ।।
रण का पहाड़, दुश्मन कि भुजा उपाङ,
तेग का बहादुर ढुंढाहङ का किँवाङ ।।

दारु मीठी दाख री,

दारु मीठी दाख री, सूरां मीठी शिकार ।
सेजां मीठी कामिणी, तो रण मीठी तलवार ।।

व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ !
गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !!

दारु पीवो रण चढो, राता राखो नैण ।
बैरी थारा जल मरे, सुख पावे ला सैण ॥

चार बांस चौबीस गज

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण !
ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान !!
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण !
ता ऊपर सुल्तान है, मार मार मोटे तवे मत चूके चौहान !!
अबकी चढ़ी कमान ,को जानै फिर कब चढे ।
जिनि चुक्केचौहान, इक्के मारे इक्क सर।।

एक पुराणी कहावत -

जे कोई जणती राणियां, डूंग जिस्यो दीवाण ।
तो इण हिन्दुस्तान मे पलतो नही फिरंगाण ।।

ग्राण्ट नामक अंग्रेज लिखता है -

मैंने भारत में कई युद्ध देखं और कई बहादुरों को द्रढ़ता से लङते देखा ।
किन्तु राजपुत जमींदारों के रण-कौशल से बढकर कोई युद्ध नहीं देखा ।।

नोट - बिहार बैशवारा के राव बेनी सिंह जी से हुवे 23 जुन 1857 नवाबगंज ( लखनऊ ) के युद्ध के बाद का कथन है ।।

रण खेती रजपूत री,कबहू न पीठ धरेह !
देश रुखाले आपणे, दुखिया पीड़ हरे !

   युद्ध एक खेत हे जहा रजपूत वीरो की खेती होती हे  जो कभी युद्ध में अपनी पीठ नही दिखाते और अपने देश की रक्षा करके अपनी प्रजा के दुखो को दूर करता है।

Comments

  1. माता दी दो क्षत्रिय धर्म मोटि थारी महेर "
    कर्तव्य निज पालन करू आ शक्ति दिजे फेर

    ReplyDelete

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