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राजपूती बड़ी कविताए

राजपूत एकता

कब तलक सोये रहोगे, सोने से क्या हासिल हुआ,
व्यर्थ अपने वक्त को खोने से क्या हासिल हुआ,
शान और शौकत हमारी जो कमाई ''वीरों'' ने वो जा रही,
अब सिर्फ बैठे रहने से क्या हासिल हुआ,
सोती हुई राजपूती कौम को जगाना अब पड़ेगा,
गिर ना जाए गर्त में, ''वीरों'' उठाना अब पड़ेगा,
बेड़ियाँ ''रुढिवादिता'' की पड़ी हुई जो कौम में,
उन सभी बेड़ियों को तोडना हमें अब पड़ेगा,
संतान हो तुम उन ''वीरों'' की वीरता है जिनकी पहचान,
तेज से दमकता मुख और चमकती तलवार है उनका निशान,
वीरता की श्रेणी में ''क्षत्रियों'' का पहला है नाम,
झुटला नहीं सकता जमाना, इथिहस है साक्षी प्रमाण,
प्रहार कर सके ना कोई अपनी आन-बाण-शान पर,
जाग जाओ अब ऐ ''वीरो'' अपने ''महाराणा'' के आवहान पर,
शिक्षा और संस्कारों की अलख जागते अब चलो,
राह से भटके ''वीरों'' को संग मिलते अब चलो,
फूट पड़ने ना पाए अपनी कौम में अब कभी,
''क्षत्रिय एकता'' ऐसी करो के मिसाल दें हमारी सभी,
कोई कर सके ना कौम का अपनी उपहास,
आओ ''एक'' होकर रचें हम अपना स्वर्णिम इतिहास ।

क्षत्रिय

क्षत्रियों की छतर छायाँ में, क्षत्राणियों का भी नाम है |
और क्षत्रियों की छायाँ में ही, पुरा हिंदुस्तान है |
क्षत्रिय ही सत्यवादी हे, और क्षत्रिय ही राम है |
दुनिया के लिए क्षत्रिय ही, हिंदुस्तान में घनश्याम है |
रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है |
मांस पक्षी के लिए दिया, क्षत्रियों ने भी दान है |
राणा ने जान देदी परहित, हर राजपूतों की शान है |
प्रथ्वी की जान लेली धोखे से, यह क्षत्रियों का अपमान है |
हिन्दुओं की लाज रखाने, हमने देदी अपनी जान है |
धन्य-धन्य सबने कही पर, आज कहीं न हमारा नाम है |
भडुओं की फिल्मों में देखो, राजपूतों का नाम कितना बदनाम है |
माँ है उनकी वैश्या और वो करते हीरो का काम है |
हिंदुस्तान की फिल्मों में, क्यो राजपूत ही बदनाम है |
ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने, किया कही उपकार का काम है |
यदि किया कभी कुछ है तो, उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है |

घास री रोटी

घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो
अरे घास री रोटी ही……
हुँ लड्यो घणो, हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
हुँ पाछ नहि राखी रण म, बैरयां रो खून बहावण म
जद याद करुं हल्दीघाटी, नैणां म रक्त उतर आवै
सुख: दुख रो साथी चेतकडो, सुती सी हूंक जगा जावै
अरे घास री रोटी ही……
पण आज बिलखतो देखुं हूं, जद राज कंवर न रोटी न
हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ, भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
महलां म छप्पन भोग झका, मनवार बीना करता कोनी
सोना री थालयां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
अरे घास री रोटी ही……
ऐ हा झका धरता पगल्या, फूलां री कव्ठी सेजां पर
बै आज रूठ भुख़ा तिसयां, हिन्दवाण सुरज रा टाबर
आ सोच हुई दो टूट तडक, राणा री भीम बजर छाती
आँख़्यां म आंसु भर बोल्या, म लीख़स्युं अकबर न पाती
पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं, आ रावल कुतो हियो लियां
चितौड ख़ड्यो ह मगरानँ म, विकराल भूत सी लियां छियां
अरे घास री रोटी ही……

हे क्षत्रिय

हे क्षत्रिय!
उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!
ले ईस नये रण संग्राम मे भाग!
भरकर अपनी भुजाओँ मेँ दम....
मिटा दे लोगोँ के भ्रम...,
देख आज तु क्योँ है?
अपने कर्तव्योँ से दुर!
कर विप्लव का फिर शंखनाद,
उठा तेरी काया मे फिर रक्त का ज्वार!

हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!
देख शिखाओँ को,
उनसे उठ रहा है धुआँ..,
उठ खडा हो फिर 'अक्षय' तु,
कर दुष्टोँ का संहार,
निती के रक्षणार्थ बन तु पार्थ!
हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!

कर विप्लव का फिर शंखनाद..
याद कर अपने पुरखोँ के बलिदान को..,
चल उन्ही के पथ पर,
कर निर्माण एक नया ईतिहास,
जिन्होने दिए तुम्हारे लिए प्राण...,
कुछ कर कार्य ऐसा के बढे उनका सन्मान..,
हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!

'अक्षय' खडा ईस मोड पर, रहा है तुझे पुकार...,
करा उसे अपने अंदर के..,
एक क्षत्रिय का साक्षात्कार!
हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!

"राजपूत आया "

रात चौंधाई, दिन घबराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
धरती भी डोली, आई सूरज पर भी छाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
पहाडो को झुकाया, मौत को भी तड़पाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
शौर्य को जगाया
शौर्य को लड़ाया
शौर्य को हराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
दुश्मन घबराया
दुश्मन को हराया
दुश्मन के किले की नींव को हिलाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

समाज को प्रकाश दिखाया
समाज को बचाया
समाज को न्याय दिलाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

धरती पर एक समानता को फैलाया
आर्यव्रत की शान को बढाया
तलवारों के स्तंभों से प्यार का पुल बनाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

औरत को समाज में मान दिलाया
कमजोर भी मजबूत हालत में आया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

अग्नि को लोगो ने ठंडा पाया
समंदर को भी लोगो ने जमता पाया
जब इस धरती पर राजपूत आया

दुश्मन की आँखों में आया डर का साया
शेर भी उस दहाड़ से घबराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

इनके क्रोध को न जगाना
इनके धैर्य को न डगाना
क्योंकि तब- तब प्रिलय आई है
जब- जब इस धरती पर राजपूत आया
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"आज में तलवार उठाता हूँ"

आज या नयी श्रिस्ति रचूंगा, या इस प्राण का दान दूंगा
आज में युद्ध का शंखनाथ बजाता हूँ!आज में तलवार उठाता हूँ
ज़िन्दगी जियूँगा तोह अपने उस्सुलो पे
आज माँ चामुंडा की सोगंध खाता हूँ
आज में शंखनाथ  बजाता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
परवाह नहीं आज किसी की,डर नहीं मृत्युभ का भी
आज नया इतहास  रचता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
सत्य की लड़ाई में आज प्राण निछावर करूँगा
आज अपने पूर्वजो का सर गर्व से फिर ऊँचा करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
शोर्ये के नए मायने रचूंगा
आज केसरी रंग में खुद को रंगुंगा
आज में अँधेरे का सीना चीर सत्य को रोशन करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
पर्वत हो चाहे कितना भी ऊँचा
आकाश की छाती चीर आज संहार करूँगा
आज में युद्ध का शंखनाथ बजाता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
सत्य को आज रोशन करुँग
आज नया इतहास रचूंगा
या गौरव रथ हासिल करूँगा
या हजारो वीरो की गुमनामी में खो जाऊंगा
मगर आज में नहीं जुकुंगा
मृत्युभ या लक्ष्य किसी एक को हसील करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
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"एक राजपूत क्या है।।"

अक्शर अचाई का रास्ता गंदिगी से हो कर गुजरता है।
अगर कुछ अच्हा करना है तो गंदिगी को ख़तम करना होगा।।
कुछ करना है अगर तो कीचड़  में खुदना ही होगा।
अगर किसी को न्याय देना है तो आज लड़ना ही होगा।।
अगर अब नहीं आगे बढ़ेंगे तो ज़िन्दगी भर लाइन में लगना ही होगा।
अगर आज कीचड़ साफ नहीं किया तो कल दलदल में फसना ही होगा ।
अगर आज कुछ नहीं किया तो कल रोना ही होगा।।
अगर अब बैठे रह गए तो ज़िन्दगी भर रोना होगा।
अगर आज आंखे नहीं खोली तो ज़िन्दगी भर आंखे बंद रखनी होगी।।
अगर आज कान बंद कर लिए तो ज़िन्दगी भर शोर सहेना होगा।
अगर आज नहीं जागे दोस्तों तो ज़िन्दगी भर सोना पड़ेगा ।।
उठो जागो अन्याय के आगे आज तलवार उठालो।
तोड़ दो आज सारी ज़ंजीरो को, बता दो इन चोरो को।
बता दो इस दुनिया को की हम रणवीर है।
बता दो की हम रंजित है।।
हम आज भी वही ताकत रखते है।
अपनी प्यास पानी से नहीं बल्कि शोनित से बुजाते है।
आज भी हम जब ललकार उठाते है तो शेर भी अपनी दुम दबाते है।।
तोड़ दो सारी ज़ंजीरो को, तोड़ दो इन बंधन को. आज जीत्लो इस दुनिया को।
सिखा दो इस दुनिया को की सिधांत क्या होते है।
आज बता दो की आदर्श क्या है।।
दिखा दो सबको की सब्दो के मोल क्या होते है ।
दिखा दो सबको की राज केसे करते है ।
सिखा दो सबको की जीवन मृत्यु क्या है।
आज बता दो इनको की एक राजपूत क्या है।
आज बता दो इनको की एक राजपूत क्या है।।
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चेतक

चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट काट,
करता था सफल जवानी को॥

कलकल बहती थी रणगंगा,
अरिदल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी,
चटपट उस पार लगाने को॥

वैरी दल को ललकार गिरी,
वह नागिन सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो बचो,
तलवार गिरी तलवार गिरी॥

पैदल, हयदल, गजदल में,
छप छप करती वह निकल गई।
क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर,
देखो चम-चम वह निकल गई॥

क्षण इधर गई क्षण उधर गई,
क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई।
था प्रलय चमकती जिधर गई,
क्षण शोर हो गया किधर गई॥

लहराती थी सिर काट काट,
बलखाती थी भू पाट पाट।
बिखराती अवयव बाट बाट,
तनती थी लोहू चाट चाट॥
क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
राणा कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह,
रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी॥
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