Skip to main content

महाराणा

आखिर कब तक हम अपने पूर्वजों द्वारा,
रोपित फसल ही खाते रहेंगे,
आखिर कब तक हम उनके अच्छे कार्यों की,
बस जय जय कार लगते रहेंगे,
महाराणा ,पृथ्वी,कुंवर सिंह, और बहुत से बड़े हैं नाम,

देश और कौम की खातिर,त्याग दिए जिन्होंने प्राण,
हाँ, उनकी जय जय कार लगाने में है हम सबकी शान,
पर आज का ये युग अब फिर मांग रहा हमसे बलिदान,
आखिर कब तक आपस में लड़ लड़ कर ,
अपना सम्मान लुटवाते रहेंगे,
आखिर कब तक हम आपसी फूट के कारण,
अपना सर्वस्व गंवाते रहेंगे,,
अब तो जागो मेरे रणबांकुरों,तुम ऐसा कुछ कर जाओ,
उनकी जय जय कार करो,अपनी भी जय करवाओ,
जैसे हम उनके वंशज करते सम्मान से उनको याद,
उसी तरह सम्मान करें हमारा, सब इस जग से जाने के बाद ,
हम सब मिलकर”padam”कर जाएँ ऐसा कारनामा,
जिस से सारे गर्व से बोलें”जय जय वीर राजपूताना’

जो लेता है जन्म धरा पर वह एकबार ही मरता है,
मरता है जो जिस भांति इतिहास वैसा ही गढ़ता है,
नहीं ऐसी छातियाँ क्षत्रियों की जो संगीनों से डरता है,
अपने असंख्य शत्रुओं को, वह मारकर ही मरता है,
संकट हो जब स्वाभिमान पे चैन से कब नर सोता है?

… जो सोता गहरी निद्रा में, वह पाकर भी सर्वश्य खोता है,
कुचल दो फण नाग ka, जो रह-रहकर फुफकार रहा,
तुझ शक्ति की अनदेखी कर पौरुश्ता को ललकार रहा,
उठो, क्षत्रिय फिर एकबार अम्बर में आग लगा दो,
जो सो गया है कॉम, उन्हें फिर से आज जगा दो,
गरजो, फिर दहला दो, अम्बर को अपने हुंकारों से,
प्रकम्पित कर दो इस धरा को गांडीव की टंकारों से,
विजय चाहते हो अगर सचमुच इन विषैले नागों पर,
साफ करो वन की कंटक झाड़ियाँ, फैले इन भूभागों पर।

Comments

Popular posts from this blog

राजपूती दोहे

रा जा झुके, झुके मुग़ल मराठा, राजा झुके, झुके मुग़ल मराठा, झुक गगन सारा। सारे जहाँ के शीश झुके, पर झुका न कभी "सूरज" हमारा।। झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे ! झिरमिर झिरमिर मेवा बरसे मोर...

राजपूती दोहे

•» ” दो दो मेला नित भरे, पूजे दो दो थोर॥ सर कटियो जिण थोर पर, धड जुझ्यो जिण थोर॥ ” मतलब :- •» एक राजपूत की समाधी पे दो दो जगह मेले लगते है, पहला जहाँ उसका सर कटा था और दूसरा जहाँ उसका ध...

वीरवर पाबूजी राठौड़ ॥

"रजवट रो थूं सेहरौ, सब सूरां सिरमौङ । धरती पर धाका पङै, रंग पाबू राठौड़ ।। "घोङो, जोङो, पागङी, मूछां तणी मरोड़ । ऐ पांचू ही राखली, रजपूती राठौड़ ।।