क्षत्रिय धर्म को भूल, राजपूत हम बन गये, छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार अँहकार मे तन गये, क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटनेपर भी लङते थे, दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ शेरो कि...
तूं जब से इस दूनिया में आया... तुने क्षत्रिय कुल जब पाया... कर उस क्षात्र धर्म को वंदन...... जिसे किस्मत से तुने पाया... में जब से समजन लागा. .. मेरा भाग्य पूराना जागा. ... कभी तलवारों से खेला.... ...